Class 9 Sanskrit Chapter 4 Hindi Translation सूक्तिमौक्तिकम्

Class 9 Sanskrit Chapter 4 Hindi Translation सूक्तिमौक्तिकम्


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सूक्तिमौक्तिकम् 

 प्रस्तुतोSयं पाठः नैतिकशिक्षाणां प्रदायकरूपेण वर्तते। अस्मिन् पाठांशे विविधग्रन्थेभ्यः संग्रहणं कृत्वा नानानैतिकशिक्षाबोधकपद्यानि गृहीतानि सन्ति। अत्र सदाचरणस्य महिमा, प्रियवाण्याः आवश्यकता, परोपकारिणां स्वभावः, गुणार्जनस्य प्रेरणा, मित्रतायाः स्वरूपं, श्रेष्ठसङ्गतेः प्रशंसा तथा च सत्संगतेः प्रभावः इत्यादीनां विषयाणां निरूपणम् अस्ति। संस्कृतसाहित्ये नीतिग्रन्थानां समृद्धा परंपरा दृश्यते। तत्र प्रतिपादितशिक्षणाम् अनुगमनं कृत्वा जीवनसाफल्यं कर्तुं शक्नुमः।    

Hindi Translation: प्रस्तुत इस पाठ का उद्देश्य नैतिक शिक्षा प्रदान करना है। इस पाठ में विभिन्न ग्रंथों से एकत्रित विभिन्न नैतिक शिक्षण छंद शामिल हैं। यह अच्छे आचरण की महिमा, मधुर वचनों की आवश्यकता, उपकार करने वालों का स्वभाव, पुण्य कमाने की प्रेरणा, मित्रता का स्वभाव, अच्छी संगति की प्रशंसा और अच्छी संगति के प्रभाव से संबंधित है। संस्कृत साहित्य में नैतिकता ग्रंथों की एक समृद्ध परंपरा है। वहां सिखाई गई शिक्षाओं पर चलकर हम जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।


वृत्तं यत्नेन संरक्षेद वित्तमेति च याति च। 

अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः।।1।। . 

                                                                            -मनुस्मृतिः

हिन्दी अनुवाद : हमें अपने आचरण की प्रयत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि धन तो आता है और चला जाता है, धन  के नष्ट हो जाने पर मनुष्य नष्ट नहीं होता है। परन्तु चरित्र या आचरण के नष्ट हो जाने पर मनुष्य भी नष्ट हो जाता है। 



श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चैवावधार्यताम्। 

आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् ।।2।। 

                                                                                                                - विदुरनीतिः 

हिन्दी अनुवाद : धर्म के तत्व को सुनो और सुनकर उसको ग्रहण करो, उसका पालन करो। अपने से प्रतिकूल व्यवहार का आचरण दूसरों के प्रति कभी नहीं करना चाहिए अर्थात जो व्यवहार आपको अपने लिए पसंद नहीं है, वैसा आचरण दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए।  



प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः। 

तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।।3।।

                                                                                     - चाणक्यनीतिः 

हिन्दी अनुवाद : प्रिय वचन बोलने से सब प्राणी प्रसन्न होते हैं इसलिए तो हमें हमेशा मीठा ही बोलना चाहिए। मीठे वचन बोलने में हमें कंजूसी नहीं करनी चाहिए। 



पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः। 

नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः परोपकाराय सतां विभूतयः।।4।। 

                                                                                        - सुभाषितरत्नभाण्डागारम् 

हिन्दी अनुवाद : नदियाँ अपना पानी स्वयं नहीं पीतीं। पेड़ अपने फल स्वयं नहीं खाते, निश्चित ही बादल अनाज को  नहीं खाते सज्जनों की धन-सम्पत्तियाँ दूसरों के लिए ही होती हैं। 



गुणेष्वेव हि कर्तव्यः प्रयत्नः पुरुषैः सदा। 

गुणयुक्तो दरिद्रोSपि नेष्वरैरगुणैः समः।।5।।

                                                                           - मृच्छकटिकम् 

हिन्दी अनुवाद : मनुष्य को सदा गुणों को ही प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। गरीब होता हुआ भी वह गुणवान व्यक्ति ऐश्वर्य शाली गुणहीन के समान नहीं हो सकता अर्थात वह उससे कहीं अधिक श्रेष्ठ होता है। 



आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्। 

 दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना छायेव मैत्री खलसज्जनानां।।6।।

                                                                                     - नीतिशतकं 

हिन्दी अनुवाद: आरंभ में लम्बी फिर धीरे-धीरे छोटी होने वाली तथा पहले छोटी फिर धीरे-धीरे बढ़ने वाली पूर्वाह्न तथा अपराह्न काल की छाया की तरह दुष्टों और सज्जनों की मित्रता अलग-अलग होती है।  



यत्रापि कुत्रापि गता भवेयुर्हंसा महीमण्डलमण्डनाय। 

हानिस्तु तेषां हि सरोवराणां येषां मरलैः सह विप्रयोगः।।7।। 

                                                                                    - भामिनीविलासः 

हिन्दी अनुवाद : पृथ्वी को सुशोभित करने वाले हंस भूमण्डल में (इस पृथ्वी पर) जहाँ कहीं भी प्रवेश करने में समर्थ हैं, हानि तो उन सरोवरों की ही है, जिनका हंसों से अलग हो जाता है।  



गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः। 

आस्वाद्यतोयाः प्रवहन्ति नद्यः समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः।। 8।। 

                                                                            - हितोपदेशः  

हिन्दी अनुवाद : गुणवान लोगों में रहने के कारण  ही गुणों को सगुण कहा जाता है। गुणहीन को प्राप्त करके  पीने योग्य अर्थात कुस्वाद या नमकीन हो जाती हैं।      


शब्दार्था (Word Meaning):

वित्तम- धन, ऎश्वर्य 

वृत्तम -आचरण, चरित्र 

अक्षीणः - नष्ट न हुआ 

धर्मसर्वस्वं -धर्म का सब कुछ 

प्रतिकूलानि -अनुकूल नहीं 

तुष्यन्ति -सन्तुष्ट होते हैं 

वक्तव्यं -कहना चाहिए 

वारिवाहाः - जल वहन करने वाले बादल 

विभूतयः -सम्पत्तियाँ 

गुणयुक्तः -गुणों से युक्त गुणहीनों से 

आरम्भगुर्वी -आरम्भ में लम्बी 

भिन्ना -(छाया) की तरह अलग-अलग 

महीमण्डल- मण्डनाय- पृथ्वी को सुशोभित करने के लिए 

मरालैः -हंसों से 

विप्रयोगः - अलग होना 

आस्वाद्यतोया - स्वाद युक्त जल वाली 

आसाद्य - प्राप्य 

अपेयाः - न पीने योग्य   

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