संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित (Sanskrit Slokas with Hindi meaning) :

संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित (Sanskrit Slokas with Hindi meaning) :

संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित-
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान रिपुः। 
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।।

अनुवाद -
मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन उसमे बसने वाला आलस्य हैं। मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र उसका परिश्रम हैं, जो हमेशा उसके साथ रहता हैं, इसलिए वह दुःखी नहीं रहता।  

यथा ह्यकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्। 
एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति।।

अनुवाद-
रथ कभी एक पहिये पर नहीं चल सकता हैं, उसी प्रकार पुरुषार्थ विहीन व्यक्ति का भाग्य सिद्ध नहीं होता। 

Sanskrit Slokas with Hindi meaning

अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्। 
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।

अनुवाद -
तेरा मेरा करने वाले लोगो की सोच उन्हे बहुत कम देती हैं।  उन्हें छोटा बना देती हैं, जबकि जो व्यक्ति सभी का हित सोचते हैं। उदार चरित्र के हैं पूरा संसार ही उसका परिवार होता हैं। 

बलवानप्यशक्तोSसौ धनवानपि निर्धनः। 
श्रुतवानपि मूर्खोSसौ यो धर्मविमुखो जनः।।

अनुवाद -
जो व्यक्ति कर्मठ नहीं हैं, अपना धर्म नहीं निभाता वो शक्तिशाली होते हुए भी निर्बल हैं, धनी होते हुए भी गरीब हैं और पढ़े लिखे होते हुए भी अज्ञानी हैं। 

संस्कृत श्लोक 

चन्दनं शीतलं लोके, चन्दनादपि चन्द्रमाः। 
चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः।।

अनुवाद -
चन्दन को संसार में सबसे शीतल लेप माना गया हैं लेकिन कहते हैं। चन्द्रमा उससे भी ज्यादा शीतलता देता हैं लेकिन इन सबके अलावा अच्छे मित्रो का साथ सबसे अधिक शीतलता एवम शांति देता हैं। 

अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्। 
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्।।

अनुवाद -
महर्षि वेदव्यास ने अपने पुराण में दो बाते कही हैं जिनमें पहली हैं दूसरों का भला करना पुण्य हैं और दूसरी दुसरो को अपनी वजह से दुखी करना ही पापा है। 

संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्। 
वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः।।

अनुवाद -
जल्दीबाजी में कोई कार्य नहीं करना चाहिए क्योंकि बिना सोच किया गया कार्य घर में विपत्तियों को आमंत्रण देता हैं। जो व्यक्ति सहजता से सोच समझ कर विचार करके अपना काम करते हैं लक्ष्मी स्वयम ही उनका चुनाव कर लेती हैं। 

विद्या मित्रं प्रवासेषु, भार्या मित्रं गृहेषु च। 
व्याधितस्यौषधं मित्रं, धर्मो मित्रं मृतस्य च।.

अनुवाद -
यात्रा के समय एक मित्र की तरह साथ देता हैं घर में पत्नी एक मित्र की तरह साथ देती हैं, बीमारी के समय दवाएँ साथ निभाती हैं, अंत समय में धर्म सबसे बड़ा मित्र होता हैं। 


Sanskrit Slokas with Hindi meaning

मा करू धनजनयौवनगर्वं, हरति निमेषात्कालः सर्वं। 
मायामयमिदमखिलम् हित्वा, ब्रह्मपदम् त्वं प्रविश विदित्वा।।

अनुवाद -
धन, शक्ति और यौवन पर गर्व मत करो, समय क्षण भ में इनको नष्ट कर देता है।  इस विश्व को माया से घिरा हुआ जान कर तुम ब्रह्म पद में प्रवेश करो। 

लोभमूलानि पापानि संकटानि तथैव च। 
लोभात्प्रवर्तते वैरं अतिलोभात्विनश्यति।।

अनुवाद -
लोभ पाप और  संकटों का मूल कारण है, लोभ शत्रुता में वृद्धि करता है, अधिक लोभ करने वाला विनाश को प्राप्त होता है। 

Sanskrit Slokas 

नलिनीदलगतजलमतितरलम्, तद्वज्जीवितमतिशयचपलम्। 
विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं, लोक शोकहतं च समस्तम्।।

अनुवाद -
जीवन कमल-पात्र पर पड़ी हुई पानी की बूंदों के समान अनिश्चित एवं अल्प है। यह समझ लो कि समस्त विश्व रोग, अहंकार और दुःख में डूबा हुआ है। 
संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः। 
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।

अनुवाद -
विनम्र और नित्य अनुभवियों की सेवा करने वाले में गुणों का विकास होता है -आयु, विद्या, यश और बल। 

अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहुभाषते। 
अविश्वस्ते विश्वसिति मूढ़चेता नराधमः।।

अनुवाद -
मनुष्यों में सबसे अधम अर्थात नीच पुरुष वही है, जो बिना बुलाए किसी के यहाँ जाता है और बिना पूँछे अधिक बोलता है साथ ही जिसपर विश्वास न किया जाये उसपर भी विश्वास करता है, उसे ही मूढ़, चेता, तथा अधम पुरुष कहा गया है। 

दर्शने स्पर्शणे वापि श्रवणे भाषणेSपि वा। 
यत्र द्रवत्यन्तरङ्ग स स्नेह इति कथ्यते।।

अनुवाद -
यदि किसी को देखने से या स्पर्श करने से, सुनने से या बात करने ह्रदय द्रवित हो  स्नेह कहा जाता है।       

उत्साहो बलवानार्य नास्त्यात्साहात्पं बलम्। 
सोत्साहस्य च लोकेषु न किंचिदपि दुर्लभम्।।

अनुवाद -
उत्साह श्रेष्ठ पुरुषों का बल है, उत्साह से बढ़कर और कोई बल नहीं है।  उत्साहित व्यक्ति के लिए इस लोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं है। 

संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

पातितोSपि कराघातौ-रुत्पतत्येव कन्दुकः। 
प्रायेण साधुवृत्तानाम-स्थायिन्यो विपत्तयः।।

अनुवाद -
हाथ से पटकी हुई गेंद भी भूमि पर गिरने के बाद ऊपर की और उठती है, सज्जनों का बुरा समय अधिकतर थोड़े समय के लिए ही होता है। 

न ही कश्चित् विजानाति किं कस्य श्वो भविष्यति। 
अतः श्वः करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान।।

अनुवाद -
कल क्या होगा यह कोई नहीं जनता है इसलिए कल के करने योग्य कार्य को आज कर लेने वाला ही बुद्धिमान है। 

Sanskrit Slokas with Hindi meaning

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। 
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।

अनुवाद -
जिस कुल में स्त्रियाँ पूजित होती हैं, उस कुल से देवता प्रसन्न होते हैं। जहाँ स्त्रीयों का अपमान होता है, वहाँ सभी ज्ञानादि कर्म निष्फल होते हैं। 

शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्। 
न शोचन्ति न यत्रता वर्धते तद्धि सर्वदा।।

अनुवाद-
जिस कुल में बहु-बेटियां क्लेश भोगती हैं वह कुल शीघ्र नष्ट हो जाता है।  किन्तु जहाँ उन्हें किसी तरह का दुःख नहीं होता वह कुल सर्वदा बढ़ता ही रहता है। 

तडागकृत वृक्षरोपि इष्टयज्ञश्च यो द्विजः। 
एते स्वर्गे महीयन्ते ये चान्ये सत्यवादिनः।।

अनुवाद -
तालाब बनवाने, वृक्षरोपण करने, और यज्ञ का अनुष्ठान करने वाले द्विज को स्वर्ग में महत्ता दी जाती है, इसके अतिरिक्त सत्य बोलने वालों को भी महत्त्व मिलता है। 

दानं भोगं नाशस्तिस्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य। 
यो न ददाति न भुङ्क्ते तस्य तृतीया गतिर्भवति।।

अनुवाद -
धन की संभव नियति तीन प्रकार की होती है। पहली है उसका दान, दूसरी उसका भोग, और तीसरी है उसका नाश। जो व्यक्ति उसे न किसी को देता है और न ही उसका स्वयं भोग करता है, उसके धन की तीसरी गति होती है, अर्थात उसका नाश होना है। 

संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

लोभेन बुद्धिश्चलति लोभे जनयते तृषाम्। 
तृषार्तो दुःखमाप्नोति परत्रेह च मानवः।।

अनुवाद -
लोभ से बुद्धि विचलित हो जाती है, लोभ सरलता से न बुझाने वाली तृष्णा को जन्म देता है. जो तृष्णा से  है वह दुःख  का भागीदार बनता है, इस  लोक में और परलोक में भी। 

लोभात्क्रोधेः प्रभवति लोभात्कामः प्रजायते। 
लोभान्मोहश्च नाशश्च लोभः पापस्य कारणम्।। 
अनुवाद- 
लोभ से क्रोध का भाव उपजता है,लोभ से कामना या इच्छा जागृत होती है, लोभ से ही व्यक्ति मोहित हो जाता है, यानी विवेक खो बैठता है। वस्तुतः लोभ समस्त पाप का कारण है। 

न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति। 
हविषा कृष्णवर्त्मेव भूय एव अभिवर्तते।।

अनुवाद -
 मनुष्य की इच्छा कामनाओं के अनुरूप सुखभोग से नहीं तृप्त होती है।  यानी व्यक्ति की इच्छा फिर भी बनी रहती है। असल में वह तो और बढ़ने लगती है, ठीक वैसे ही जैसे आग में इंधन डालने से वह अधिक प्रज्वलित हो उठती है। 

संसारकटुवृक्षस्य द्वे फले अमृतोपमे। 
सुभाषितरसस्वादः सङ्गतिः सुजने जने।।

अनुवाद -
संसार रूपी कड़ुवे पेड़ से अमृत तुल्य दो ही फल उपलब्ध हो सकते हैं, एक है मीठे बोलों का रसास्वादन और दूसरा है सज्जनों की संगति। 

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