Sanskrit Class 8 Chapter 14 आर्यभटः Translations in Hindi
आर्यभटःइस पाठ में -भारतवर्ष की अमूल्य निधि है ज्ञान-विज्ञान की सुदीर्घ परम्परा को सम्पोषित किया प्रबुद्ध मनीषियों ने। इन्हीं मनीषियों में अग्रगण्य थे आर्यभट। दशमलव पद्धति आदि के प्रारम्भिक प्रयोक्ता आर्यभट ने गणित को नयी दिशा दी। इन्हें एवं इनके प्रवर्तित सिद्धान्तों को तत्कालीन रूढ़िवादियों का विरोध झेलना पड़ा। वस्तुतः गणित को विज्ञान बनाने वाले तथा गणितीय गणना पद्धति के द्वारा आकाशीय पिण्डों की गति का प्रवर्तन करने वाले ये प्रथम आचार्य थे। आचार्य आर्यभट के इसी वैदुष्य का उद्घाटन प्रस्तुत पाठ में है।
Sanskrit Class 8 Chapter 14 Translations in Hindi
क। भारतवर्ष की अमूल्य निधि है ज्ञान-विज्ञान की सुदीर्घ परंपरा। परंपरा को सम्पोषित किया प्रबुद्ध मनीषियों ने। इन्हीं मनीषियों में अग्रगण्य थे आर्यभट। दशमलव पद्धति आदि के प्रारम्भिक प्रयोक्ता आर्यभट ने गणित को नयी दिशा दी।
पूर्वदिशायाम् उदिते सूर्यः पश्चिमदिशायां च अस्तं गच्छति इति दृश्यते हि लोके। परं न अनेन अवबोध्यमस्ति यत्सूर्यो गतिशील इति। सूर्योSचलः पृथिवी च चला या स्वकीये अक्षे घूर्णति इति साम्प्रतं सुस्थापितः सिद्धांतः। सिद्धांतोंsयम् प्राथम्येन येन प्रवर्तितः, स आसीत् महान् गणितज्ञः ज्योतिर्विच्च आर्यभटः। पृथिवी स्थिरा वर्तते इति परम्परया प्रचलिता रूढ़िः तेन प्रत्यादिष्टा। तेन उदाहृतं यद् गतिशीलायां नौकायाम उपदिष्टः मानवः नौकां स्थिारमानुभवति, अन्यान च पदार्थान गतिशीलान अवगच्छति। एवमेव गतिशीलाया पृथिव्यां अवस्थितः मानवः पृथिवीं स्थिरामनुभवति सूर्यादिग्रहान् च गतिशीलान् वेत्ति।
हिन्दी अनुवाद (Hindi Translation)-
संसार में यह दिखाई देता है कि सूर्य पूर्व दिशा में उदय होता है और पश्चिम दिशा में अस्त होता है परन्तु इससे यह नहीं जाना जाता है कि सूर्य गतिशील है। सूर्य अचल है और पृथ्वी चलमान है जो अपनी धुरी पर घूमती है यह इस समय भली-भाँति स्थापित सिद्धांत है। इस सिद्धांत को सर्वप्रथम जिसने प्रारम्भ किया, वह महान गणित का ज्ञाता और ज्योतिषी आर्यभट था। पृथ्वी स्थिर है, परम्परा से चली आ रही इस प्रथा का उन्होंने खण्डन किया। उन्होंने उदाहरण दिया कि चलती हुई नाव में बैठा हुआ मनुष्य नाव को रुकी हुई अनुभव करता है और दूसरे पदार्थों को गतिशील समझता है। इसी तरह ही गति युक्त पृथ्वी पर स्थित मनुष्य पृथ्वी को स्थिर अनुभव करता है और सूर्य आदि ग्रहों को गतिशील जानता है।
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ख। 476 तमे ख्रिस्ताब्दे (षटसप्तत्यधिक्चतः शततमे वर्षे) आर्यभटः जन्म लब्ध-वानिति तेनैव विरचिते "आर्यभटीयम्" इत्यस्मिन् ग्रन्थे उल्लिखितम। ग्रन्थोSयं तेन त्रायोविंशतितमे वयसि विरचितः। ऐतिहासिकस्त्रोतोभिः ज्ञायते यत् पाटलिपुत्रं निकषा आर्यभटस्य वेधशाला आसीत्। अनेन इदम अनुमीयते यत तस्य कर्मभूमिः पाटलिपुत्रमेव आसीत्।
हिन्दी अनुवाद (Hindi Translation)-
सन ४७६ वें ईस्वीय वर्ष में (चार सौ छिहत्तरवें वर्ष में ) आर्यभट ने जन्म लिया, यह उन्होंने अपने द्वारा ही लिखे " आर्यभटीयम " नामक इस ग्रन्थ में उल्लेख किया है। यह ग्रन्थ उन्होंने तेईसवें वर्ष की आयु में रचा था। ऐतिहासिक स्त्रोतों से जाना जाता है कि पाटलिपुत्र के निकट आर्यभट की नक्षत्रों को जानने की प्रयोगशाला थी। इससे यह अनुमान किया जाता है कि उनका कार्य क्षेत्र पाटलिपुत्र ही था।
ग। आर्यभटस्य योगदानं गणितज्योतिषा सम्बंद्ध वर्तते यत्र संख्यानाम् आकलनं महत्वं आदधाति। आर्यभटः फलितज्योतिषशास्त्रो न विश्वसिति स्म। गणितीयपद्धत्या कृतं आकलनमाधृत्य एव तेन प्रतिपदितं यद् ग्रहणे राहुकेतुनामकौ दानवौ नास्ति कारणम्। तत्र तु सूर्यचन्द्रपृथिवी इति त्रीणि एव कारणानि। सूर्यं परितः भ्रमन्त्याः पृथिव्याः, चन्द्रस्य परिक्रमापथेन संयोगाद् ग्रहणं भवति। यदा पृथिव्याः छायापातेन चन्द्रस्य प्रकाशः अवरुध्यते तदा चन्द्रग्रहणं भवति। तथैव पृथ्वीसूर्ययोः मध्ये समागतस्य चन्द्रस्य छायापातेन सूर्यग्रहणं दृश्यते।
हिन्दी अनुवाद (Hindi Translation)-
आर्यभट का योगदान गणितज्योतिष से सम्बन्ध रखता है जहाँ संख्याओं की गणना महत्व रखती है। आर्यभट फलित ज्योतिषशास्त्र में विश्वास नहीं करते थे। गणित शास्त्र की पद्धति से किए गए आकलन पर आधरित करके ही उन्होंने कहा कि ग्रहण में राहु और केतु नामक राक्षस कारण नहीं है। वहाँ पर सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी ये तीनों ही कारण हैं। सूर्य के चारों ओर घूमती हुई पृथ्वी का चन्द्रमा के घूमने के मार्ग के संयोग से ग्रहण होता है। जब पृथ्वी की छाया पड़ने से चन्द्रमा का प्रकाश रुक जाता है तब चन्द्र ग्रहण होता है। वैसे ही पृथ्वी और सूर्य के बीच में आए हुए चन्द्रमा की परछाई से सूर्य ग्रहण दिखाई पड़ता है।
घ। समाजे नूतनानां विचाराणा स्वीकारे प्रायः सामान्यजनाः काठिन्यमनुभवन्ति। भारतीयज्योतिः शास्त्रो तथैव आर्यभटस्यापि विरोधः अभवत्। तस्य सिद्धान्ताः उपेक्षिताः। स पण्डितम्मन्यानाम् उपहासपात्रं जातः। पुनरपि तस्य दृष्टिः कालातिगामिनी। दृष्टा। आधुनिकैः तस्मिन्, तस्य च सिद्धान्ते समादरः प्रकटितः। अस्मादेव कारणाद् अस्माकं
प्रथमोपग्रहस्य नाम आर्यभट इति कृतं। वस्तुतः भारतीयायाः गणितपरम्परायाः अथ च विज्ञानपरम्परायाः असौ एकः शिखरपुरुषः आसीत्।
हिन्दी अनुवाद (Hindi Translation)-
समाज में नए विचारों को स्वीकार करने में अधिकतर सामान्य लोग कठिनाई को अनुभव करते हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में वैसे ही आर्यभट का विरोध हुआ। उनके सिद्धान्त अनसुने कर दिए गए। वह स्वयं को भारी विद्वान मानने वालों की हँसी का पात्र बन गए फिर भी उनकी दृष्टि समय को लाँघने वाली देखी गई। किन्तु आधुनिक वैज्ञानिकों ने उनमें, और उनके सिद्धान्त में आदर प्रकट किया। इसी कारण से हमारे पहले उपग्रह का नाम आर्यभट रखा गया।
वास्तव में भारत की गणित परम्परा के और विज्ञान की परम्परा के वह एक शिखर पुरुष थे।
English Translation- Coming soon
Sanskrit Class 8 Chapter 14 Summary in Hindi
👉पहले इस पाठ में कहा गया हैं -संसार में यह दिखाई देता है कि सूर्य पूर्व दिशा में उदय होता है और पश्चिम दिशा में अस्त होता है परन्तु इससे यह नहीं जाना जाता है कि सूर्य गतिशील है। सूर्य अचल है और पृथ्वी चलमान है जो अपनी धुरी पर घूमती है यह इस समय भली-भाँति स्थापित सिद्धांत है। इस सिद्धांत को सर्वप्रथम जिसने प्रारम्भ किया, वह महान गणित का ज्ञाता और ज्योतिषी आर्यभट था। पृथ्वी स्थिर है, परम्परा से चली आ रही इस प्रथा का उन्होंने खण्डन किया। उन्होंने उदाहरण दिया कि चलती हुई नाव में बैठा हुआ मनुष्य नाव को रुकी हुई अनुभव करता है और दूसरे पदार्थों को गतिशील समझता है। इसी तरह ही गति युक्त पृथ्वी पर स्थित मनुष्य पृथ्वी को स्थिर अनुभव करता है और सूर्य आदि ग्रहों को गतिशील जानता है।
👉सन ४७६ वें ईस्वीय वर्ष में (चार सौ छिहत्तरवें वर्ष में ) आर्यभट ने जन्म लिया, यह उन्होंने अपने द्वारा ही लिखे " आर्यभटीयम " नामक इस ग्रन्थ में उल्लेख किया है। यह ग्रन्थ उन्होंने तेईसवें वर्ष की आयु में रचा था। ऐतिहासिक स्त्रोतों से जाना जाता है कि पाटलिपुत्र के निकट आर्यभट की नक्षत्रों को जानने की प्रयोगशाला थी। इससे यह अनुमान किया जाता है कि उनका कार्य क्षेत्र पाटलिपुत्र ही था।
👉आर्यभट का योगदान गणितज्योतिष से सम्बन्ध रखता है जहाँ संख्याओं की गणना महत्व रखती है। आर्यभट फलित ज्योतिषशास्त्र में विश्वास नहीं करते थे। गणित शास्त्र की पद्धति से किए गए आकलन पर आधरित करके ही उन्होंने कहा कि ग्रहण में राहु और केतु नामक राक्षस कारण नहीं है। वहाँ पर सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी ये तीनों ही कारण हैं। सूर्य के चारों ओर घूमती हुई पृथ्वी का चन्द्रमा के घूमने के मार्ग के संयोग से ग्रहण होता है। जब पृथ्वी की छाया पड़ने से चन्द्रमा का प्रकाश रुक जाता है तब चन्द्र ग्रहण होता है। वैसे ही पृथ्वी और सूर्य के बीच में आए हुए चन्द्रमा की परछाई से सूर्य ग्रहण दिखाई पड़ता है।
👉समाज में नए विचारों को स्वीकार करने में अधिकतर सामान्य लोग कठिनाई को अनुभव करते हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में वैसे ही आर्यभट का विरोध हुआ। उनके सिद्धान्त अनसुने कर दिए गए। वह स्वयं को भारी विद्वान मानने वालों की हँसी का पात्र बन गए फिर भी उनकी दृष्टि समय को लाँघने वाली देखी गई। किन्तु आधुनिक वैज्ञानिकों ने उनमें, और उनके सिद्धान्त में आदर प्रकट किया। इसी कारण से हमारे पहले उपग्रह का नाम आर्यभट रखा गया।
वास्तव में भारत की गणित परम्परा के और विज्ञान की परम्परा के वह एक शिखर पुरुष थे।
Sanskrit Class 8 Chapter 14 Translations in Hindi
शब्दार्थाः (Word Meaning ):-
Sanskrit Words |
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लोके |
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अवबोध्यम् |
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अचलः |
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चला |
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स्वकीये |
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अक्षे |
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घूर्णति |
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सुस्थापितः |
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प्राथम्येन् |
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ज्योतिर्विद |
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रूढिः |
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प्रत्यादिष्ठा |
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खिस्ताब्दे |
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षटसप्ततिः |
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वयसि |
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वेधशाला |
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आकलनम् |
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आदधाति |
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भ्रमन्त्याः |
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छायापातेन् |
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अवरुध्यते |
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अपरत्र |
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अवस्थितः |
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विश्वसिति स्म |
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कलातिगामिनी |
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