Sanskrit Class 8 Chapter 5 कण्टकेनैव कण्टकम् Translations in Hindi
Sanskrit Class 8 Chapter 5 Translations in Hindi + English Translation-
मध्यप्रदेश के डिण्डोरी जिले में परधनों के बीच प्रचलित एक लोककथा है। यह पञ्चतन्त्र की शैली में रचित है। इस कथा में यह स्पष्ट किया गया है कि संकट में चतुराई एवं प्रत्युत्पन्नमतित्व से बाहर निकला जा सकता है।
Sanskrit Class 8 Chapter 5 कण्टकेनैव कण्टकम् Translations in Hindi
कण्टकेनैव कण्टकम्
"मध्यप्रदेश के डिण्डोरी में परधानों के बीच प्रचलित एक लोककथा है। यह पञ्चतन्त्र की शैली में रचित है। इस कथा में यह स्पष्ट किया गया है कि संकट में चतुराई एवं प्रत्युत्पन्नमतित्व से बाहर निकला जा सकता है।"
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क। आसीत् कश्चित् चञ्चलो नाम व्याधः। पक्षिमृगादीनां ग्रहणेन सः स्वीयां जीविका निर्वाहयति स्म। एकदा सः वने जालं विस्तीर्य गृहम् आगतवान। अन्यस्मिन् दिवसे प्रातःकाले यदा चञ्चलः वनं गतवान तदा सः दृष्टवान यत् तेन विस्तारिते जाले दौर्भाग्याद एकः व्याघ्रः बद्धः आसीत्। सोSचिन्तयत्, व्याघ्रः बद्धः आसीत्। सौSचिन्तयत्, 'व्याघ्रः मां खादिष्यति अतएव पलायनं करणीयं।' व्याघ्रः न्यवेदयत्-'भो मानव! कल्याणं भवतु ते। यदि त्वं मां मोचयिष्यसि तर्हि अहं त्वां न हनिष्यामि।' तदा सः व्याधः व्याघ्रः जालात बहिः निरसारयत्। व्याघ्रः क्लान्तः आसीत्। सोSवदत, 'भो मानव! पिपासुः अहम्। नद्याः जलमानीय मम पिपासां शमय। व्याघ्रः जलं पीत्वा पुनः व्याधमवदत, 'शमय मे पिपासा। साम्प्रतं बुभुक्षितोSस्मि। इदानीम् अहम् त्वां खादिष्यामि।' चञ्चलः उक्तवान्, 'अहम् त्वत्कृते धर्मम् आचरितवान। त्वया मिथ्या भणितम्। त्वं मां खादितुम् इच्छसि ?
हिन्दी अनुवाद (Hindi Translation) -
कोई चंचल नाम का शिकारी था। पशु-पक्षी आदि को पकड़कर वह अपनी जीविका चलाता था। एक बार वह वन में जाल बिछाकर घर आ गया।दूसरे दिन सुबह जब वह वन में गया तब उसने देखा कि उसके द्वारा बिछाए गए जाल में दुर्भाग्य से एक बाघ फँस गया।बाघ थका हुआ था।वह बोला- हे मानव! मैं प्यासा हूँ, नदी का जल लाकर मेरी प्यास शांत करो। बाघ ने जल पीकर फिर शिकारी को बोला मेरी प्यास शांत हुई ।।अब मैं भूखा हूँ । इस समय मैं तुम्हें खाऊँगा । चंचल बोला मैंने तुम्हारे लिए धर्म का आचरण किया तुमने मुझे झूठ कहा- तुम मुझे खाने की इच्छा रखते हो?
ख। व्याघ्रः अवदत्, 'अरे मुर्ख! क्षुधार्ताय किमपि अकार्यम् न भवति। सर्वः स्वार्थं समीहते।'
चञ्चलः नदीजलम् अपृच्छत्। नदीजलम् अवदत्,'एवमेव भवति, जनाः मयि स्नानं कुर्वन्ति, वस्त्राणि प्रक्षालयन्ति तथा च मल-मूत्रादिकं विसृज्य निवर्तन्ते, वस्तुतः सर्वः स्वार्थं समीहते।
हिन्दी अनुवाद (Hindi Translation) -
बाघ बोला अरे मूर्ख भूख के लिए कोई भी कार्य अकरणीय नहीं होता। सभी स्वार्थी होते हैं। चंचल ने नदी के जल से पूछा। नदी का जल बोला, ऐसा ही होता है, लोग मेरे जल में स्नान करते हैं, कपड़े धोते हैं तथा मल मूत्र छोड़कर लौट जाते हैं या चले जाते हैं वास्तव में सभी स्वार्थी होते हैं।
ग। चञ्चलः वृक्षं उपगम्य अपृच्छत। वृक्षः अवदत, 'मानवाः अस्माकं छायायां विरमन्ति। अस्माकं फलानि खादन्ति, पुनः कुठारैः प्रहृत्य अस्मभ्यं सर्वदा कष्ठं ददति। यत्र कुत्रापि छेदनं कुर्वन्ति। सर्वः स्वार्थं समीहते।'
हिन्दी अनुवाद (Hindi Translation) -
चंचल ने वृक्ष के पास जाकर पूछा । वृक्ष बोला मानव हमारी छाया में विश्राम करते हैं। हमारे फल खाते हैं। फिर कुल्हाड़ी से प्रहार करके हमें हमेशा दुख देते हैं। जहाँ कहीं भी छेद करते हैं। सभी स्वार्थी होते हैं।
घ। समीपे एका लोमशिका बदरी-गुल्मानां पृष्ठे निलीना एतां वार्तां शृणोति स्म। सा सहसा चञ्चलमुपसृत्य कथयति -"का वार्ता ? माम् अपि विज्ञापय" सः अवदत् -"अहह मातृस्वसः! अवसरे त्वं समागतवती। मया अस्य व्याघ्रस्य प्राणाः रक्षिताः, परम् एषः मामेव खादितुम् इच्छति।" तदनन्तरं सः लोमशिकायै निखिलां कथां न्यवेदयत्।
हिन्दी अनुवाद (Hindi Translation) -
पास में ही एक लोमड़ी बेरी की झाड़ियों के पीछे छिपकर यह वार्ता सुन रही थी। वह अचानक चंचल के पास जाकर कहती क्या बात है? मुझे भी बताओ वह बोला अरी! मौसी तुम सही समय पर आई हो । मैंने इस बाघ की प्राणों की रक्षा की परंतु यह मुझे ही खाने की इच्छा रखता है।
ङ। लोमशिका चञ्चलम् अकथयत्- बाढम्, त्वं जालं प्रसारय। पुनः सा व्याघ्रम् अवदत्- केन प्रकारेण त्वम् एतस्मिन् जाले बद्धः इति अहं प्रत्यक्षं द्रष्टुमिच्छामि। व्याघ्रः तद वृत्तान्तं प्रदर्शयितुं तस्मिन् जाले प्राविशत। लोमशिका पुनः अकथयत्-सम्प्रति पुनः पुनः कुर्दनं कृत्वा दर्शय। सः तथैव समाचरत्। अनारतं कूर्दनेन सः श्रान्तः अभवत्। जाले बद्धः सः व्याघ्रः क्लान्तः सन् निःसहायो भूत्वा तत्र अपतत् प्राणभिक्षामिव च अयाचत्। लोमशिका व्याघ्रम् अवदत् सत्यं त्वया भणितम् 'सर्वः स्वार्थं समीहते।'
हिन्दी अनुवाद (Hindi Translation) -
लोमड़ी ने चंचल को कहा अच्छा, तुम जाल फैलाओ फिर वह बाघ से बोली किस प्रकार तुम इस जाल में बँध गए थे यह मैं प्रत्यक्ष देखना चाहती हूँ । बाघ ने उस घटना को दिखाने के लिए उस जाल में प्रवेश किया लोमड़ी फिर कहती है- अब बार-बार कूदकर दिखाओ। उसने वैसा ही आचरण किया लगातार कूदने से वह थक गया ।
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class 8 Sanskrit chapter 4 summary in Hindi-
👉एक चंचल नाम का शिकारी था। पशु-पक्षी आदि को पकड़कर वह अपनी जीविका चलाता था।एक बार वह वन में जाल बिछाकर घर आ गया।
👉 दूसरे दिन सुबह जब वह वन में गया तब उसने देखा कि उसके द्वारा बिछाए गए जाल में दुर्भाग्य से एक बाघ फँस गया।बाघ थका हुआ था।वह बोला- हे मानव! मैं प्यासा हूँ, नदी का जल लाकर मेरी प्यास शांत करो। बाघ ने जल पीकर फिर शिकारी को बोला मेरी प्यास शांत हुई ।।अब मैं भूखा हूँ । इस समय मैं तुम्हें खाऊँगा । चंचल बोला मैंने तुम्हारे लिए धर्म का आचरण किया तुमने मुझे झूठ कहा- तुम मुझे खाने की इच्छा रखते हो?
👉बाघ बोला अरे मूर्ख भूख के लिए कोई भी कार्य अकरणीय नहीं होता। सभी स्वार्थी होते हैं।चंचल ने नदी के जल से पूछा। नदी का जल बोला, ऐसा ही होता है, लोग मेरे जल में स्नान करते हैं, कपड़े धोते हैं तथा मल मूत्र छोड़कर लौट जाते हैं या चले जाते हैं वास्तव में सभी स्वार्थी होते हैं।
👉चंचल ने वृक्ष के पास जाकर पूछा । वृक्ष बोला मानव हमारी छाया में विश्राम करते हैं। हमारे फल खाते हैं। फिर कुल्हाड़ी से प्रहार करके हमें हमेशा दुख देते हैं। जहाँ कहीं भी छेद करते हैं। सभी स्वार्थी होते हैं।
पास में ही एक लोमड़ी बेरी की झाड़ियों के पीछे छिपकर यह वार्ता सुन रही थी। वह अचानक चंचल के पास जाकर कहती क्या बात है? मुझे भी बताओ वह बोला अरी! मौसी तुम सही समय पर आई हो । मैंने इस बाघ की प्राणों की रक्षा की परंतु यह मुझे ही खाने की इच्छा रखता है।
👉 लोमड़ी ने चंचल को कहा अच्छा, तुम जाल फैलाओ फिर वह बाघ से बोली किस प्रकार तुम इस जाल में बँध गए थे यह मैं प्रत्यक्ष देखना चाहती हूँ । बाघ ने उस घटना को दिखाने के लिए उस जाल में प्रवेश किया लोमड़ी फिर कहती है- अब बार-बार कूदकर दिखाओ। उसने वैसा ही आचरण किया लगातार कूदने से वह थक गया ।
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Sanskrit Class 8 Chapter 5 कण्टकेनैव कण्टकम् :
शब्दार्थः (Word Meaning)
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स्वीयाम् |
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दौर्भाग्यात् |
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बद्धः |
बँधा हुआ |
पलायनम् |
पलायन करना, भाग जाना |
न्यवेदयत् |
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मोचयिष्यसि |
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निरसारयत् |
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क्लान्तः |
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पिपासुः |
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शमय |
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बुभुक्षितः |
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भणितम् |
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प्रक्षालयन्ति |
धोते हैं |
विसृज्य |
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निवर्तन्ते |
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उपगम्य |
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विरमन्ति |
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कुठारैः |
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प्रहृत्य |
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छेदनम् |
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लोमशिका |
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निलीना |
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उपसृत्य |
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मातृस्वसः |
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समागतवती |
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निखिलाम् |
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बाढम् |
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प्रत्यक्षम् |
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वृत्तान्तम् |
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प्रदर्शयितुम् |
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प्राविशत् |
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कुर्दनम् |
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प्रत्यावर्तत् |
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